डूबा सूरज साँझ हों गई
पंक्षी नीडो में जा पहुचे
सुन बच्चो की ची ची चे चे
वे भूले दिन के कष्ट सभी , यह स्वर लहरी सुख धाम दे गयी
डूबा सूरज साँझ हों गयी
जो पंथी राहों में होगे
जल्दी जल्दी चलते होगे
प्रिय जन चिंतित हों जायेगे , यदि पथ में उनको रात हों गयी
डूबा सूरज साँझ हों गयी
हर दिन जब ये पल आता हैं
मन में जगती इक आशा हैं
शायद कोई मुझसे कह दे, घर आओ देखो शाम हों गयी
डूबा सूरज साँझ हों गयी
विक्रम[पुन:प्रकाशित]
Bahut Sundar....Dhanywaad!
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रचना अच्छी लगी. शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना .. आभार !!
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना!
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