उन्मादित सपनों के छल से
आहत था झुठलाये सच से
तृष्णा की परछाई से,उसको मैने लड़ते देखा
मैने अपने कल को देखा
वर्त्तमान से जो कुछ पाया
उससे लगता था घबडाया
बीते कल की ओर पलट कर,जाने की कोशिश में देखा
मैने अपने कल को देखा
जीवन-मरण संधि रेखा पर
राह न पाये खोज यहाँ पर
उसको अपनी दुर्बलता पर,फूट-फूट कर रोते देखा
मैने अपने कल को देखा
vikram
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंउन्मादित सपनों के छल से
जवाब देंहटाएंआहत था झुठलाये सच से
बहुत सुन्दर ... आज के आईने में कल की परछाई
गजब!! वाह!
जवाब देंहटाएंजीवन-मरण संधि रेखा पर
जवाब देंहटाएंराह न पाये खोज यहाँ पर
उसको अपनी दुर्बलता पर,फूट-फूट कर रोते देखा
मैने अपने कल को देखा....
अक्सर अंतिम समय में इंसान जब विगत पर दृष्टि डालता है तो ऐसे ही पछताता है ... पर वर्तमान में समझ नही पाता इस बात को ....
जीवन-मरण संधि रेखा पर
जवाब देंहटाएंराह न पाये खोज यहाँ पर
उसको अपनी दुर्बलता पर,फूट-फूट कर रोते देखा
मैने अपने कल को देखा,,,
बहुत सुंदर रचना ,,,
recent post : ऐसी गजल गाता नही,
Aaj dubara padhne par bhi utni hi taaza lagi ..
जवाब देंहटाएंवक़्त निकल जाने के बाद पछतावे और रोने के अलावा कुछ शेष नहीं होता है... सुन्दर सार्थक रचना...आभार
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