आज दैनिक भास्कर समाचार पत्र पढ़ रहा था तो, श्रीमती ने एक समाचार की तरफ ध्यान दिलाया,"यूनिफार्म नही दिला पाई तो बच्चो सहित माँ ने दी जान"। समाचार का सार था,"३२ वषीय कौशल्या लोधी का १० वर्षीय बेटा उमेश ४ साल की बेटी बीना आजादी के जश्न में शामिल होने के लिए यूनीफार्म मांग रहे थे। कौशल्या से जब उनका दुख़ देखा नही गया तो उसने बच्चो के साथ गांव से ढाई किलोमीटर दूर स्थित कुएं में कूदकर देश की आजादी के दिन अपनी जान दे दी"।
क्या यही है हमारे देश के लोकतंत्र का वर्त्तमान?मासूमों की यह दर्दनाक मौत, प्रश्न बनकर खडी है सामाने,कौन है इसका जिम्मेदार ,हमारी व्यवस्था,या फिर हम आप?
vikram
padhkar apni is aazadi par rone ka man huva . vastav me ham iske liye kisi ek ko jimmedaar nahi
जवाब देंहटाएंthahara sakte. bahut hi marmik lekh.
poonam