कारवाँ बन जायेगा,चलते चले बस जाइये
मंजिले ख़ुद ही कहेगी,स्वागतम् हैं आइये
पीर को भी प्यार से,वेइंतिहाँ सहलाइये
आशिकी में डूबते,उसको भी अपने पाइये
हैं नजारे ही नहीं,काफी समझ भी जाइये
देखने वाले के नजरों,में जुनूँ भी चाहिये
बुत नहीं कोई फरिश्ते,वे वजह मत जाइये
रो रहे मासूम को,रुक कर ज़रा दुलराइये
टूटती उम्मीद पे,हसते हुए बस आइये
अपने पहलू में नई,खुसियां मचलते पाइये
विक्रम[पुन:प्रकाशित]
बहुत ही सुन्दर रचना...वाह !!!!
जवाब देंहटाएंसुंदर विचारों बहुत अच्छी रचना,....
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट "काव्यान्जलि".."बेटी और पेड़".. में click करे