हें प्रभात तेरा अभिनंदन
किरण भोर की, निकल क्षितिज से
उलझी ओस कणों के तन से
फूलों की क्यारी तब उसको, देती अपना मौन निमंत्रण
हें प्रभात तेरा अभिनंदन
भौरों के स्वर हुये गुंजरित
खग-शावक भी हुए प्रफुल्लित
श्यामा भी अपनी तानों से,करती जैसे रवि का पूजन
हें प्रभात तेरा अभिनंदन
ज्योति-दान नव पल्लव पाया
तम की नष्ट हुयी हैं काया
गोदी में गूजी किलकारी, करती हैं तेरा ही वंदन
हें प्रभात तेरा अभिनंदन
विक्रम[पुन:प्रकाशित]
हें प्रभात तेरा अभिनंदन
जवाब देंहटाएंकिरण भोर की, निकल क्षितिज से
उलझी ओस कणों के तन से
फूलों की क्यारी तब उसको, देती अपना मौन निमंत्रण ..
बहुत ही सुंदर रचना ... लाजवाब शब्द विन्यास है ....
विक्रम जी ..बहुत ही सुंदर....बहुत ही सुंदर ....बहुत ही सुंदर कविता. इसे पढ़वाने के लिए आपका धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंइस नारे के साथ कि......चलो हिन्दी अपनाएँ
आप को हिन्दी दिवस पर शुभकामनाएँ