जब हम कुछ दिन बाद मिले थे
मेरी प्रतीक्षा मे तुम रत थे
नयन तेरे कितने विह्वल थे
एक-दूजे को देख हमारे मन, मे कितने दीप जले थे
जब हम कुछ दिन बाद मिले थे
मै आया जब पास तुम्हारे
कम्पित तन-मन हुये हमारे
अपलक तक नयनो से मुझको ,तुमने कितने प्रश्न किये थे
जब हम कुछ दिन बाद मिले थे
क्षण भर का एकांत देख कर
वक्ष-स्थल से मेरे लग कर
तेरी उर धड़कन ने मुझसे जीवन के प्रति-क्षण मागे थे
जब हम कुछ दिन बाद मिले थे
विक्रम[पुन:प्रकाशित]
विक्रम जी ..बड़ी अच्छी कविता लिखी है
जवाब देंहटाएंआभार .....
बहुत भावपूर्ण कविता है। शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंमेरी प्रतीक्षा मे तुम रत थे
जवाब देंहटाएंनयन तेरे कितने विह्वल थे
एक-दूजे को देख हमारे मन, मे कितने दीप जले थे
एक और अच्छी कविता.........
बधाई......
चन्द्र मोहन गुप्त
कुछ अंतराल के बाद पुनः आपको देखना अच्छा लगा..एक मधुर भाव-भीनी प्रेम-रेस मे सराबोर सी सुंदर कविता है यह
जवाब देंहटाएंVikram jee bahut komal bhaw hain aaki is kawita men. Prem yahee to hai yadon aur ashaon ka ek atoot silsila.
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