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रविवार, 19 सितंबर 2010

जब हम कुछ दिन बाद मिले थे......

जब हम कुछ दिन बाद मिले थे

मेरी प्रतीक्षा मे तुम रत थे
नयन तेरे कितने विह्वल थे


एक-दूजे को देख हमारे मन, मे कितने दीप जले थे


जब हम कुछ दिन बाद मिले थे

मै आया जब पास तुम्हारे
कम्पित तन-मन हुये हमारे


अपलक तक नयनो से मुझको ,तुमने कितने प्रश्न किये थे


जब हम कुछ दिन बाद मिले थे

क्षण भर का एकांत देख कर
वक्ष-स्थल से मेरे लग कर


तेरी उर धड़कन ने मुझसे जीवन के प्रति-क्षण मागे थे

जब हम कुछ दिन बाद मिले थे

विक्रम[पुन:प्रकाशित]

5 टिप्‍पणियां:

  1. विक्रम जी ..बड़ी अच्छी कविता लिखी है
    आभार .....

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  2. बहुत भावपूर्ण कविता है। शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
  3. मेरी प्रतीक्षा मे तुम रत थे
    नयन तेरे कितने विह्वल थे

    एक-दूजे को देख हमारे मन, मे कितने दीप जले थे

    एक और अच्छी कविता.........

    बधाई......

    चन्द्र मोहन गुप्त

    जवाब देंहटाएं
  4. कुछ अंतराल के बाद पुनः आपको देखना अच्छा लगा..एक मधुर भाव-भीनी प्रेम-रेस मे सराबोर सी सुंदर कविता है यह

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  5. Vikram jee bahut komal bhaw hain aaki is kawita men. Prem yahee to hai yadon aur ashaon ka ek atoot silsila.

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