महाशून्य से व्याह रचायें
क्रिया- कर्म से ऊपर उठ कर
अहम् और त्वम् यहीं छोड़कर
काल प्रबल के सबल द्वार को ,तोड़ नये आयाम बनायें
महाशून्य से व्याह रचायें
स्वाहा और स्वास्ति में अंतर
भ्रमित रहा मन यहाँ निरंतर
माया से विभ्रांत चेतना,को अवचेतन पथ पर लायें
महाशून्य से व्याह रचायें
निर्गुण और सगुण मिल जायें
दिग्विहीन हो कर बह जायें
दृगांचल अनंत हो जायें,जब प्रिय से भाँवरें रचायें
महाशून्य से व्याह रचायें
विक्रम
प्रेरक उदबोधन !
जवाब देंहटाएंBahut,bahut sundar!
जवाब देंहटाएंक्रिया- कर्म से ऊपर उठ कर अहम् और त्वम् यहीं छोड़कर
जवाब देंहटाएंमहाबली के सबल द्वार को ,तोड़ नये आयाम बनायें
महाशून्य से व्याह रचायें..
बढ़िया अभिव्यक्ति बहुत सुंदर पंक्तियाँ बेहतरीन रचना
सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंगहरे भाव।
बहुत बढ़िया गीत रचा है आपने!
जवाब देंहटाएंसुन्दर और प्रेरक रचना | बहुत खूब |
जवाब देंहटाएंसादर |
स्वाहा और स्वास्ति में अंतर
जवाब देंहटाएंभ्रमित रहा मन यहाँ निरंतर ..
सच है इस मृत्यु लोक में मन भ्रमित ही रहता है सदा ... स्वाहा का असली मकसद नहीं जान पाता ... प्रेरक रचना ...
महाशून्य से व्याह रचायें
जवाब देंहटाएंनिर्गुण और सगुण मिल जायें
दिग्विहीन हो कर बह जायें ... अद्वितीय भाव
bahut sundar rachna h, aabhar.
जवाब देंहटाएं'Tanhaime mai gata hun,'ye rachana nahee mil rahee!
जवाब देंहटाएंझकझोरने में समर्थ.
जवाब देंहटाएंभावों से लबरेज़.
महाशुन्य ....
जवाब देंहटाएंआध्यात्मिकता से परिपूर्ण बेहतरीन कविता.
बहुत बढिया रचना है!
जवाब देंहटाएंबहुत गहरे भाव झानापकी रचना में
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना।
माया से विभ्रांत चेतना,को अवचेतन पथ पर लायें
जवाब देंहटाएंसुंदर!
आगामी शुक्रवार को चर्चा-मंच पर आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंआपकी यह रचना charchamanch.blogspot.com पर देखी जा सकेगी ।।
स्वागत करते पञ्च जन, मंच परम उल्लास ।
नए समर्थक जुट रहे, अथक अकथ अभ्यास ।
अथक अकथ अभ्यास, प्रेम के लिंक सँजोए ।
विकसित पुष्प पलाश, फाग का रंग भिगोए ।
शास्त्रीय सानिध्य, पाइए नव अभ्यागत ।
नियमित चर्चा होय, आपका स्वागत-स्वागत ।।
क्रिया- कर्म से ऊपर उठ कर
जवाब देंहटाएंअहम् और त्वम् यहीं छोड़कर
काल प्रबल के सबल द्वार को ,तोड़ नये आयाम बनायें
प्रेरक रचना