सुनो
तन्हाई में,अधरों पर अधर की छुवन
गर्म सासों की तपन
और एक दीर्ध आलिगन का एहसास
होता तो होगा
बीता कल कभी कभी
चंचल भौरे की तरह
मन की कली पर मडराता तो होगा
किसी न किसी शाम
डूबते सूरज को देख
मचलती कलाइयो को छुडा कर
दबे पाँव
घर की चौखट पर आना ,याद तो आता होगा
मुझे तो भुला दोगी
पर सच कहना
क्या
इन्हें भूलने का ,मन करता होगा
विक्रम[पुन:प्रकाशित]
सुन्दर कविता है विक्रम जी.
जवाब देंहटाएंVah..bhtariin abhivyakti
जवाब देंहटाएंप्रेम की लगन जल्दी भूलने वाली नहीं होती !
जवाब देंहटाएंदबे पाँव
जवाब देंहटाएंघर की चौखट पर आना ,
याद तो आता होगा
मुझे तो भुला दोगी
पर सच कहना
क्या-?
इन्हें भूलने का
मन करता होगा...
वाह!!!!!क्या बात है विक्रम जी,....
अनुपम भाव लिए सुंदर रचना...बेहतरीन पोस्ट. .
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....
अभी धीर जी के ब्लॉग में गया ,आप और धीर जी की वेदना एक जैसे लगी, ऐसी कवितायें पुरानें जख्मों को कुरेद जाती हैं,आप तो लिख कर फुरसत पा लिये.पता नही आप लोगों ने यह दर्द भोगा भी है या नही ,पर हमारे जैसे लोगो का तो ध्यान रखिये, रात की नीद उड़ा दी .आप भी अन्ना को छोड़ यह दर्द भरा गन्ना हमें थमा दिया .न चूसते बने न फेकते .
जवाब देंहटाएंAchhi lagi aapki kavita...
जवाब देंहटाएंविक्रम जी....बहुत सुन्दर रचना है..आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आने और फौलोअर बनने के लिए आभार!
कौन भूलना चाहेगा भला
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
बहुत मुश्किल होता है ऐसे पलों को भुला पाना जो इतने अन्तरंग होते हैं ... लाजवाब रचना ...
जवाब देंहटाएंएक नजर मेरें ब्लॉग में डाले मेरे हुजूर
जवाब देंहटाएंमजा आपकी आयेगा,दोहों से भरपूर
behatariin rachana.bdhaaii
जवाब देंहटाएंकृपया इसका अवलोकन करें vijay9: आधे अधूरे सच के साथ .....
जवाब देंहटाएंअनुपम भाव संयोजन लिए बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील शब्द ,उम्दा रचना.
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