अन्ना पहले यह निश्चय कर लें, वह करना क्या चाहते हैं.
अन्ना को यह समझना चाहिए,की देश की जनता भ्रष्टाचार से परेशान है,और अन्ना नें उसका लाभ लेकर दिशाहीन आन्दोलन व सस्ती लोकप्रियता हासिल करनें का प्रयास किया , अन्ना कहते हैं,अगले लोकसभा चुनाव में जनता को जागृत करेगें युवाओं को चुनाव लड़ाएँगे ,किसी पार्टी का नाम नही लेगें,साथ ही काग्रेस के खिलाफ बातें करतें है.लोकपाल लोकसभा में वह अपनी शर्तो पर पास कराना चाहते है,सरकार का अंग न होते हुये सरकार को अपनें इशारे पर चलाना चाहते हैं. क्या यह तानाशाही का प्रतीक नहीं है. अन्ना को यह गलतफहमी हैं की देश की जनता उनके साथ है. उनके समर्थन में कितनें लोग सामनें आये ,इस एक अरब आबादी वाले देश में वह खुद अंदाजा लगा लें?अगर मीडिया अन्ना को इतना प्रचारित न करे तो पचास आदमी भी न आयें. शुरू में लोगो में आशा का संचार हुआ था,पर विवेकहीन तर्कों रोज तथ्य हीन बयानों नें जनता के बीच अन्ना की कलई खोल कर रख दी हैं. गांधीवादी विचारधारा का खुला दुरप्रयोग गाधीवादी बन कर अन्ना नें ही किया है. प्रचार के लिये लालाइत लोगो की भीड़ में उन्हें अपनें लिये देश की जनता का समर्थन दिख रहा है,अगर देश की जनता को जागृत करनें में अन्ना टीम कामयाब होती तो अभी तक सारे भ्रटाचारी जेल में होते,सरकार सत्ता से बाहर ,साथ ही सत्ता ईमानदार लोगो के हाथो में. यह तब होता जब अन्ना जंतर-मंतर में बैठने की बजाय ईमानदारी के साथ जनता के बीच जाकर सीधा संवाद स्थापित करते.
vikram अन्ना को यह समझना चाहिए,की देश की जनता भ्रष्टाचार से परेशान है,और अन्ना नें उसका लाभ लेकर दिशाहीन आन्दोलन व सस्ती लोकप्रियता हासिल करनें का प्रयास किया , अन्ना कहते हैं,अगले लोकसभा चुनाव में जनता को जागृत करेगें युवाओं को चुनाव लड़ाएँगे ,किसी पार्टी का नाम नही लेगें,साथ ही काग्रेस के खिलाफ बातें करतें है.लोकपाल लोकसभा में वह अपनी शर्तो पर पास कराना चाहते है,सरकार का अंग न होते हुये सरकार को अपनें इशारे पर चलाना चाहते हैं. क्या यह तानाशाही का प्रतीक नहीं है. अन्ना को यह गलतफहमी हैं की देश की जनता उनके साथ है. उनके समर्थन में कितनें लोग सामनें आये ,इस एक अरब आबादी वाले देश में वह खुद अंदाजा लगा लें?अगर मीडिया अन्ना को इतना प्रचारित न करे तो पचास आदमी भी न आयें. शुरू में लोगो में आशा का संचार हुआ था,पर विवेकहीन तर्कों रोज तथ्य हीन बयानों नें जनता के बीच अन्ना की कलई खोल कर रख दी हैं. गांधीवादी विचारधारा का खुला दुरप्रयोग गाधीवादी बन कर अन्ना नें ही किया है. प्रचार के लिये लालाइत लोगो की भीड़ में उन्हें अपनें लिये देश की जनता का समर्थन दिख रहा है,अगर देश की जनता को जागृत करनें में अन्ना टीम कामयाब होती तो अभी तक सारे भ्रटाचारी जेल में होते,सरकार सत्ता से बाहर ,साथ ही सत्ता ईमानदार लोगो के हाथो में. यह तब होता जब अन्ना जंतर-मंतर में बैठने की बजाय ईमानदारी के साथ जनता के बीच जाकर सीधा संवाद स्थापित करते.
कहीं न कहीं से तो शुरुआत करनी पढेगी और किसी न किसी को तो करनी पढेगी ... अगर अन्ना ने की तो बुराई की बात नहीं है .. कुछ मतभेद हो सकते हैं .. पर कमी निकालनी हो तो आज एक भी आदमी ठीक नहीं निकलेगा ... तो क्या ये सब होता रहे ऐसे ही ....
जवाब देंहटाएंनासावा जी आपकी बात से सहमत हूँ ,की किसी न किसी को पहल तो करनी पड़ेगी, पर उचित मुद्दे को सही दिशा न देकर विवाद का मुद्दा बनाना क्या उचित है, जरा अन्ना टीम व अन्ना के बयानों पर एक नजर डाल ले ,अगर इसके बाद भी लगे की मैने गलत कहा है, माफी के साथ पोस्ट वापस ले लूगाँ .
जवाब देंहटाएंSahee kah rahe hain aap!
जवाब देंहटाएंसदन में मुलायम सिंह ने अन्ना का खुला विरोध क्या था और उनकी सरकार बन गई,और उतरांचल में अन्ना ने भाजपा का खुला समर्थन किया वहाँ भाजपा की सरकार चली गई,इससे अन्ना जी को अपनी औकात का ज्ञान हो जाना
जवाब देंहटाएंचाहिए...विक्रम जी मै आपसे पूरी तरह सहमत हूँ ,..
वाह!!!बहुत सुंदर अन्ना पर करारा व्यंग,अच्छी प्रस्तुति,..
MY RECENT POST...फुहार....: दो क्षणिकाऐ,...
वैसे कम लोगों का आना और कम लोगों का वोट देना और फिर भी सरकारो का बन जाना । दोनों को सही नही ठहराया जा सकता...हम लोग दोनों तरह से एक जैसा क्यों नही सोचते....या तो दोनों गलत हैं या फिर सही...। अन्ना जो कर रहे हैं वह देश हित में अधिक लगता है...विरोध तो अवश्य समभावी है....जिसे जो गलत लगता है वह करेगा ही...जिसे सही लगेगा वह समर्थन करेगा..
जवाब देंहटाएंsahmat hun aapse .nice post .thanks
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