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सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

दिन हौले-हौले ढलता है...

दिन हौले-हौले ढलता है

बीती  रातों के ,कुछ  सपने
सच करनें को उत्सुक इतने


आशाओं के गलियारे में,मन दौड़-दौड़ के थकता है

दिन हौले-हौले ढलता है

पिछले सारे ताने -बाने
सुलझे कैसे ये जानें


हाथों में छुवन है फूलों की,पर पग का गुखरु दुखता है

दिन हौले-हौले ढलता है


दिन के उजियाले में जितने
थे मिले यहाँ बनकर अपने


जब शाम हुई सब चले
ये ,सूनापन कितना खलता है

दिन हौले-हौले ढलता है

विक्रम

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