आ कुछ दूर चलें,फिर सोचें
अमराई की घनी छाँव में
नदी किनारे बधीं नाव में
बैठ निशा के इस दो पल में,बीते लम्हों की हम सोचें
आ कुछ दूर चलें,फिर सोचें
मन आंगन उपवन जैसा था
प्रणय स्वप्न से भरा हुआ था
तरुणाई के उन गीतों से,आ अपने तन मन को सीचें
आ कुछ दूर चलें,फिर सोचें
स्वप्नों की मादक मदिरा ले
मलय पवन से शीतलता ले
फिर अतीत में आज मिला के,जीवन मरण प्रश्न क्यूँ सोचें
आ कुछ दूर चलें,फिर सोचें विक्रम
अमराई की घनी छाँव में
नदी किनारे बधीं नाव में
बैठ निशा के इस दो पल में,बीते लम्हों की हम सोचें
आ कुछ दूर चलें,फिर सोचें
मन आंगन उपवन जैसा था
प्रणय स्वप्न से भरा हुआ था
तरुणाई के उन गीतों से,आ अपने तन मन को सीचें
आ कुछ दूर चलें,फिर सोचें
स्वप्नों की मादक मदिरा ले
मलय पवन से शीतलता ले
फिर अतीत में आज मिला के,जीवन मरण प्रश्न क्यूँ सोचें
आ कुछ दूर चलें,फिर सोचें विक्रम
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