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सोमवार, 19 अगस्त 2013

वर्षा-बूँदों की . . . . . . . . .


वर्षा-बूँदों   की  ये  लोरी 

पावस रातों की ये छोरी
तन्हाँ-तन्हाँ  कोरी-कोरी

मेरे मन आँगन बरस-बरस,क्यूँ छेड़ रही श्यामल गोरी

वर्षा-बूँदों    की   ये  लोरी

है रात  समंदर  का  आँचल
जाये भी कहाँ ये मन-पागल

आलिंगन  में   लेकर  उसको, सहलाती  तन्हाई  मेरी

वर्षा - बूँदों  की   ये   लोरी

घन  का घमंड  जब इतराता
उर मथकर कंठों तक आता

लहरों में मचलते यौवन से,बह जाए न आशा की डोरी

वर्षा-बूँदों   की   ये  लोरी


विक्रम



4 टिप्‍पणियां:

  1. है रात समंदर का आँचल
    जाये भी कहाँ ये मन-पागल

    आलिंगन में लेकर उसको, सहलाती तन्हाई मेरी

    लोरी बहुत ही सुन्दर
    साभार !

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  2. वर्षा की बूंदों के इर्द-गिर्द बुना ताना बाना ... बहुत लाजवाब सुन्दर रचना ...

    जवाब देंहटाएं