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बुधवार, 17 मई 2017

क्यूँ तुम मन्द.....

क्यूँ तुम मंद-मंद हँसती हों

मधुबन की हों चंचल हिरणी
बन  बैठी  मेरी  चित- हरणी

कर तुम ये मृदु हास , मेरे जीवन में कितने रंग भरती हों

क्यू तुम मंद-मंद हँसती हों

तुम हों  मैं  हूँ  स्थल  निर्जन
बहक न जाये ये तापस मन

अपने नयनो की मदिरा से, सुध बुध क्यू मेरे हरती हो

क्यूँ तुम मंद मंद हँसती हो

प्यार भरा हैं तेरा  समर्पण
तुझको मेरा जीवन अर्पण

मेरे वक्षस्थल में सर रख क्याँ उर से बातें करती हों

क्यूँ तुम मंद मंद हँसती हों

विक्रम

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