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बुधवार, 17 मई 2017

गगन का ......

गगन का पहला वो तारा

एक झिलमिल झलक देता
नयन  से  फिर  दूर  होता

कह रहा जैसे निशा से, तीर रवि को मैंने मारा

गगन का पहला वो तारा

रवि तभी करता समर्पण
निशा  को  देता निमंत्रण

लालिमा की खींच चूनर,कर रहा नभ से किनारा

गगन का पहला वो तारा

रात्रि  ने  घूँघट  उठाया
दीप नव नभ में जलाया

खो गया इस भीड़ में,लगता मुझे जो सबसे प्यारा

गगन का पहला वो तारा

विक्रम

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