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बुधवार, 17 मई 2017

ऋतु वसंत दिग्भ्रमित कर रहा.......

ऋतु वसंत दिग्भ्रमित कर रहा

ये  मेरा  अतीत   ले  आता
ह्रद हिलोर करने लग जाता

कल्प पाँखुरी खोल ह्रदय की,पुष्प मृदुल नव-राग भर रहा

ऋतु वसंत दिग्भ्रमित कर रहा

सुरभि सुमन नव प्राण जगाते
मदन भाव  मन  में भर  जाते

कर अतुलित श्रृंगार सृष्ट्रि का,उर तृष्णा में धार धर रहा

ऋतु वसंत दिग्भ्रमित कर रहा

समय  चक्र तब  है समझाता
महाशून्य का शिविर दिखाता

मौन नदी के तट पर आकर,क्यूँ  सच से तू  आज डर रहा

ऋतु वसंत दिग्भ्रमित कर रहा

विक्रम 

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