दर्द गाढा हो रहा है, आसमां बदरंग है
टूटती हर साँस की,आशा अभी सतरंग है
तुम कभी मिलने न आना,मौज का सागर नहीं
दो किनारों का यहाँ बस, दूर ही का संग है
दर्द को आगोश में लेकर सदा सोता रहा
अब ख़ुशी के साथ पर,मेरा नजरिया तंग है
रात का घूँघट उठा कर,क्या किया मैने यहाँ
टूटते तारों से निकली, रोशनी से जंग है
जर्रे -जर्रे में तुम्हारे , नूर की चर्चा बड़ी
सबको छलने का तुम्हारा,कौन सा यह ढंग है
विक्रम
टूटती हर साँस की,आशा अभी सतरंग है
तुम कभी मिलने न आना,मौज का सागर नहीं
दो किनारों का यहाँ बस, दूर ही का संग है
दर्द को आगोश में लेकर सदा सोता रहा
अब ख़ुशी के साथ पर,मेरा नजरिया तंग है
रात का घूँघट उठा कर,क्या किया मैने यहाँ
टूटते तारों से निकली, रोशनी से जंग है
जर्रे -जर्रे में तुम्हारे , नूर की चर्चा बड़ी
सबको छलने का तुम्हारा,कौन सा यह ढंग है
विक्रम
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " स्व॰ कर्नल डा॰ लक्ष्मी सहगल जी की ५ वीं पुण्यतिथि “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंnice blog
जवाब देंहटाएंwhat is google adsense in hindi
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जवाब देंहटाएंWhat is EAI