Click here for Myspace Layouts

शुक्रवार, 30 जनवरी 2009

रोती रजनी ...........





रोती रजनी हैं प्रभा द्वार

स्वर्णिम आशा के बंद द्वार
ये रूग्ण हाथ वाले कहार


ले जायेगे क्या डोली को ,अपने हाथो से पट उघार

रवि-रजनी का यह आलिंगन
कब तक ठहरेगा यह बन्धन

नव-वधू आज कर पायेगी ,प्रिय हाथो क्या अपना ऋंगार

हैं व्यर्थ गए सब करूण गान

रवि किरणों ने हर लिये प्राण

तम छुपा कहीं पर बैठा हैं, रवि किरणों पर करने प्रहार

vikram

1 टिप्पणी:

  1. बहुत सुंदर रात और सुबह के मिलन के घडी की और रात के अवसाद की भी ।

    जवाब देंहटाएं