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रविवार, 21 जून 2009

दर्दों के साए में भी हम ,खेलेगे रंगोली









दर्दों के साए में भी हम ,खेलेगे रंगोली
तेरी खुशियां मेरे गम हों ,जैसे दो हमजोली


याद बहुत आये वो तेरा ,देर तलक बतियाना
साझ ढले छुप छुप कर तेरा ,चुपके से घर जाना

आयेगें न अब वे लम्हें , न रातें अलबेली

दर्दो ..........................................................

तुमने तो अपनी कह डाली, कौन सुने अब मेरी
संग बीते जो पल उनकी भी ,क्या हो सकती चोरी


उल्फत मेरी बन जायेगी ,तेरे लिए पहेली
दर्दों........................................................

मेरी तो आदत है ,अपनी धुन में चलते जाना
आज नहीं तो कल तुमको भी ,पीछे मेरे आना

यादें तेरी पल-छिन आकर, करती हैं अठखेली
दर्दों.................................................................

vikram

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