टूटे तरू पतों के जैसा
मूक पड़ा मै अविचल कैसा
अपने ही हाथो से घायल,हो बैठा यह किसे बताऊँ
मेरे मौंन रुदन से होती
भंग निशा की यह नीरवता
सुन ताने प्रहरी उलूक के ,मै जी भर कर रो न पाऊँ
मेरा कौन यह जो आये
आ मेरे दुःख को बहलाये
खुद अपना प्रदेश कर निर्जन,क्यू अपनो की आस लगाऊँ
विक्रम
इतनी भावपुर्ण की शब्द नही है कि व्यान करू ............''सुन ताने प्रहरी उलूक के ,मै जी भर कर रो न पाऊँ''
जवाब देंहटाएंऐसे शब्द समायोजन बहुत ही मुश्किल से देखने को मिलता है.