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गुरुवार, 25 जून 2009

वह गगन उठाने आया है........

वह गगन उठाने आया है ?

उजले कागों सा,तन धरके

मन में सारे छल -बल भरके

भरमाये से जनमानस को,वह बोध दिलाने आया है

वह गगन उठाने आया है ?

तृष्णा ख़ुद की न बुझ पाती

पर जन-जन को लिखता पाती

तेरे मेरे हर सपने को,वह राह दिखाने आया हैं

वह गगन उठाने आया है ?

दिग्गभ्रमित सदा ही रहता है

वह कभी नही कुछ करता है

फिर भी वाणी के बल बूते,जन नायक बनने आया है

वह गगन उठाने आया है ?

विक्रम

4 टिप्‍पणियां:

  1. तृष्णा ख़ुद की न बुझ पाती
    पर जन-जन को लिखता पाती
    bahut sunder rachana.

    जवाब देंहटाएं
  2. उजले कागों सा,तन धरके

    मन में सारे छल -बल भरके

    भरमाये से जनमानस को,वह बोध दिलाने आया है


    शब्दों का अद्भुत खेल,बहुत ही अच्छा लगा.

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी कविता में कुछ ऐसा विशेष है जो आकर्षित करता है। इसे शब्दों का खेल कहें या कुछ और ,कह नहीं सकती। इतना कह सकती हूँ कि कविता बहुत पसन्द आई।
    घुघूती बासूती

    जवाब देंहटाएं