सुनो
तन्हाई में
अधरों पर अधर की छुवन
गर्म सासों की तपन
और एक दीर्ध आलिगन का एहसास
होता तो होगा
बीता कल कभी कभी
चंचल भौरे की तरह
मन की कली पर मडराता तो होगा
किसी न किसी शाम
डूबते सूरज को देख
मचलती कलाइयो को छुडा कर
तन्हाई में
अधरों पर अधर की छुवन
गर्म सासों की तपन
और एक दीर्ध आलिगन का एहसास
होता तो होगा
बीता कल कभी कभी
चंचल भौरे की तरह
मन की कली पर मडराता तो होगा
किसी न किसी शाम
डूबते सूरज को देख
मचलती कलाइयो को छुडा कर
दबे पाँव
घर की चौखट पर आना याद तो आता होगा
मुझे तो भुला दोगी
पर सच कहना
क्या
इन्हें भूलने का ,मन करता होगा
घर की चौखट पर आना याद तो आता होगा
मुझे तो भुला दोगी
पर सच कहना
क्या
इन्हें भूलने का ,मन करता होगा
vikram
bahut hi sundar kawita
जवाब देंहटाएंmaza aa gayaa...........ek naajuk se sawaal se
Waah !!! Sundar pyanaygeet....
जवाब देंहटाएंaap aaye behad khushi .aapki rachana padhkar ke baad ye khushi dohari ho gayi uttam .
जवाब देंहटाएंअनुभूति की अद्भुत कविता
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