Click here for Myspace Layouts

रविवार, 16 अगस्त 2009

क्यूँ तुम मंद-मंद हसती हों

क्यूँ तुम मंद-मंद हसती हों
मधु-बन की हों चंचल हिरणी
बन बैठी मेरी चित- हरणी

कर तुम ये मृदु-हास , मेरे जीवन में कितने रंग भरती हों
क्यू तुम मंद-मंद ह्सती हों
तुम हों मैं हूँ स्थल निर्जन
बहक न जाये ये तापस मन

अपने नयनो की मदिरा से, सुध बुध क्यू मेरे हरती हो
क्यूँ तुम मंद मंद ह्सती हो
प्यार भरा हैं तेरा समर्पण
तुझको मेरा जीवन अर्पण

मेरे वक्षस्थल में सर रख क्याँ उर से बातें करती हों
क्यूँ तुम मंद मंद हसती हों

विक्रम [पुन:प्रकाशित

9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर कृती है जो मीठेपन का अहसास दिलाती है

    जवाब देंहटाएं
  2. तुम हों मैं हूँ स्थल निर्जन
    बहक न जाये ये तापस मन
    मनोभावो को बहुत सुन्दरता से बयान किया है
    बहुत खूबसूरत रचना

    जवाब देंहटाएं
  3. aapki sabhi rachnayen padi.bahut prabhav poorn likhte hain aap badhai

    जवाब देंहटाएं
  4. vikramji,
    hindi me rachi jaane vali rachnao ko padhh kar mujhe aapke blog se santushti mili. bahut achha likhate he aap/

    जवाब देंहटाएं