मधु-बन की हों चंचल हिरणी
बन बैठी मेरी चित- हरणी
कर तुम ये मृदु-हास , मेरे जीवन में कितने रंग भरती हों
क्यू तुम मंद-मंद ह्सती हों
तुम हों मैं हूँ स्थल निर्जन
बहक न जाये ये तापस मन
अपने नयनो की मदिरा से, सुध बुध क्यू मेरे हरती हो
क्यूँ तुम मंद मंद ह्सती हो
प्यार भरा हैं तेरा समर्पण
तुझको मेरा जीवन अर्पण
मेरे वक्षस्थल में सर रख क्याँ उर से बातें करती हों
क्यूँ तुम मंद मंद हसती हों
विक्रम [पुन:प्रकाशित
बन बैठी मेरी चित- हरणी
कर तुम ये मृदु-हास , मेरे जीवन में कितने रंग भरती हों
क्यू तुम मंद-मंद ह्सती हों
तुम हों मैं हूँ स्थल निर्जन
बहक न जाये ये तापस मन
अपने नयनो की मदिरा से, सुध बुध क्यू मेरे हरती हो
क्यूँ तुम मंद मंद ह्सती हो
प्यार भरा हैं तेरा समर्पण
तुझको मेरा जीवन अर्पण
मेरे वक्षस्थल में सर रख क्याँ उर से बातें करती हों
क्यूँ तुम मंद मंद हसती हों
विक्रम [पुन:प्रकाशित
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंbahut hi bhaawpurn hai ..........laazwaab bahut hi badhiya
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कृती है जो मीठेपन का अहसास दिलाती है
जवाब देंहटाएंकाफी अच्छा लिखते हो सर
जवाब देंहटाएंतुम हों मैं हूँ स्थल निर्जन
जवाब देंहटाएंबहक न जाये ये तापस मन
मनोभावो को बहुत सुन्दरता से बयान किया है
बहुत खूबसूरत रचना
aapki sabhi rachnayen padi.bahut prabhav poorn likhte hain aap badhai
जवाब देंहटाएंbehad sunder
जवाब देंहटाएंvikramji,
जवाब देंहटाएंhindi me rachi jaane vali rachnao ko padhh kar mujhe aapke blog se santushti mili. bahut achha likhate he aap/
सुंदर और भावनात्मक रचना
जवाब देंहटाएं- विजय