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मंगलवार, 25 अगस्त 2009

आ साथी,अब दीप जलाएँ ......

आ साथी, अब दीप जलाएँ
लगी निशा होने है, गहरी
घोर तिमिर होगा अब प्रहरी
अपनी अभिलाषाओं को फिर से,निंद्रा-पथ की राह दिखाएँ
आ साथी, अब दीप जलाएँ
है पावस की रात अँधेरी
घन-बूँदों की सुन कर लोरी
शायद नीड़-नयन में लौटे,हमसे रुठी कुछ आशाएँ
आ साथी,अब दीप जलाएँ
आयेगी उषा की लाली
नही रात ये रहने वाली
दीपशिखा की इस झिलमिल में,हम सपनों के महल सजाएँ
आ साथी,अब दीप जलाएँ
vikram

10 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद ही उर्जा देती रचना......बहुत ही सुन्दर

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  2. बहुत ही ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना! बहुत बढ़िया लगा!

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  3. एक संपुर्ण आशावादी रचना के लिये बधाई स्वीकारें।

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  4. खूबसूरत भाव व शब्द ..महादेवी जी के गीतों की झलक लिए हुवे ....

    साधुवाद

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  5. vikram ji,
    pehle to bahut bahut shukriya apne comments dene ke liye mere blog per...
    aapne apni is rachna mein jis tarah se hindi ka upyog kiya hai...qaabil-e-tareef hai...
    bahut he acha likha hai aapne....excellent.
    ab aap apne is daas ke blog par aate rahiyega, main bhi aata rahunga...

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  6. सच है ..एक राह ,जिसपे चलना और मंजिल पाना वाक़ई कितना कठिन होता है ..!मंजिल तक पहुँच पानेवाले बेहद भाग्य शाली होते हैं ..वरना रिश्ते चंद क़दम चल, दम तोड़ देते हैं ..और पता चलता है ,कितने कमज़ोर थे !वक्त की आँधी उन दीयों को बुझा गयी ..!
    Aapkee rachna me vilakshan aashawaad aur tapasya kee jhalak hai!

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  7. सेहर ने बिलकुल सही कहा उनकी शैली से मेल खाती बहुत ही सकरात्मक और सार्थक सोच लिये इस रचना के लिये बधाई और शुभकामनायें

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