हमने कितना प्यार किया था
अर्ध्द -रात्रि में तुम थीं मैं था
मदमाता तेरा यौवन था
चिर-भूखे भुजपाशो में बंध, अधरों का रसपान किया था
हमने कितना प्यार किया था
ध्येय प्रणय-संसर्ग मेरा था
हृदय तुम्हारा कुछ सकुचा था
फिर भी कर स्वीकार इसे तुम ,तन मन मुझपे वार दिया था
हमने कितना प्यार किया था
थकित बदन चुपचाप पड़े थे
मरू-थल में सावन बरसे थे
हम दोनो ने एक दूजे को ,प्यारा सा उपहार दिया था
हमने कितना प्यार किया था
vikram
khoobsoorat prastuti.
जवाब देंहटाएंPREM KE RASIK RANG MEIN DOOBI KHOOBSOORAT RACHNA HAI AAPKI......LAJAWAAB
जवाब देंहटाएंAchchee prem kavita...badhai.
जवाब देंहटाएंबिक्रम जी
जवाब देंहटाएंमन को छूती सुन्दर रचना
सचमुच लाजवाब ,खूबसूरत
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