आज रात कुछ थमी-थमी सी
स्वप्न न जानें कैसे भटके
नयनों की कोरो से छलके
दूर स्वान की स्वर भेदी से ,हर आशाये डरी-डरी सी
दर्दो का वह उडनखटोला
ले कर मेरे मन को डोला
स्याह रात की जल-धरा से ,मेरी गागर भरी-भरी सी
शंकाओ का कसता धेरा
कैसा होगा मेरा सवेरा
मंजिल के सिरहाने पर ये ,राहें कैसी बटी-बटी सी
विक्रम
मंजिल के सिरहाने पर ये ,राहें कैसी बटी-बटी सी
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
दुश्चिंताओ से घिरा सफर
अनिश्चितताओ का डगर
बहुत खूब रचा है
बहुत ही बेह्तेरीं रचना है सर जी..
जवाब देंहटाएंगजब है... लाजवाब
दर्दो का वह उडनखटोला
जवाब देंहटाएंले कर मेरे मन को डोला
स्याह रात की जल-धरा से ,मेरी गागर भरी-भरी सी
waah lajawab bhav liye sunder kavita badhai
मंजिल के सिरहाने पर ये ,राहें कैसी बटी-बटी सी...Umda
जवाब देंहटाएंस्वप्न न जानें कैसे भटके
जवाब देंहटाएंनयनों की कोरो से छलके
दूर स्वान की स्वर भेदी से ,हर आशाये डरी-डरी सी
Bhav bakhubi ukere hain !!
शंकाओ का कसता धेरा
जवाब देंहटाएंकैसा होगा मेरा सवेरा
मंजिल के सिरहाने पर ये ,राहें कैसी बटी-बटी सी
कितना सजीव चित्रण है आपकी रचना में..... इस रचना को गाने में सुनना और भी अच्छा लगेगा ..........
इस शानदार, लाजवाब और बेहतरीन रचना के लिए बधाई!
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