ओ मधुमास मेरे जीवन के
क्यूँ इतने सकुचे सकुचे हो
शिशिर गया फिर भी सहमे हो
कहा बसंती हवा रह गयी.क्या दिन आये नहीं फाग के
जीवन की इन कलिकाओं में
मेरे मन की आशाओं मे
कब पराग भर पावोगे तुम ,शिशिर-समीरण से बच करके
अधर मेरे अतृप्त बडे हैं
खाली सब मधुकोष पड़े हैं
कौन ले गया छ्ल कर मुझसे मधु-मय पल जीवन के
क्यूँ इतने सकुचे सकुचे हो
शिशिर गया फिर भी सहमे हो
कहा बसंती हवा रह गयी.क्या दिन आये नहीं फाग के
जीवन की इन कलिकाओं में
मेरे मन की आशाओं मे
कब पराग भर पावोगे तुम ,शिशिर-समीरण से बच करके
अधर मेरे अतृप्त बडे हैं
खाली सब मधुकोष पड़े हैं
कौन ले गया छ्ल कर मुझसे मधु-मय पल जीवन के
विक्रम[पुन:प्रकाशित]
अधर मेरे अतृप्त बडे हैं
जवाब देंहटाएंखाली सब मधुकोष पड़े हैं
कौन ले गया छ्ल कर मुझसे मधु-मय पल जीवन के
..आपकी एक और मधुमय रचना
वैसे तो काव्य मे बसंत मे विरह-दग्ध हृदय के कई चित्रण मिलते हैं..मगर आपका यह वसंत को ही विरही बना देने का प्रयोग अनूठा है..बधाई..
virah aur madhumaas ka sundar mishran hai aapki rachna mein ..... lajawaab
जवाब देंहटाएंबेहतरीन-लाजबाब कर दिया.
जवाब देंहटाएंआपकी लेखन शैली का कायल हूँ. बधाई.
जवाब देंहटाएंअधर मेरे अतृप्त बडे हैं
जवाब देंहटाएंखाली सब मधुकोष पड़े हैं
WAAH ..........JABAAW NAHI HAI AAPKA.
virah aur prem ka adbhut sangam............lajawaab.
जवाब देंहटाएंविक्रम जी,
जवाब देंहटाएंआपकी रचनायें भाव-प्रधान होती हैं, और साहित्य के बिसरा दिये गये क्लासिकल अंदाज में शब्द संयोजन तो इतना सुन्दर कि ऐसा लगे कि कोई क्लासिक गीत पढ रहे हों।
ऐसे ही प्यारे गीत रचते रहें।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
अधर मेरे अतृप्त बडे हैं
जवाब देंहटाएंखाली सब मधुकोष पड़े हैं
कौन ले गया छ्ल कर मुझसे मधु-मय पल जीवन
bahut hi bhaavpradhaan rachna....... aise hi likhte rahiye......
आपका शब्दकोष बहुत समृद्ध है...
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव !!!
बहुत ही सुन्दर और भावमय प्रस्तुति है बधाई
जवाब देंहटाएंवाह बहुत बढ़िया ! बहुत ही ख़ूबसूरत और सुंदर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लिखी हुई आपकी ये लाजवाब रचना प्रशंग्सनीय है!
जवाब देंहटाएंhttp://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com
सुंदर भावों के साथ सुंदर शब्द रचना प्रशंसनीय है । हार्दिक शुभकामनायें ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना उतने ही अच्छे भाव ।
जवाब देंहटाएंAtyant bhavpurn aur sundar abhivyakti.Badhai.
जवाब देंहटाएंनिहायत सुन्दर और भाव युक्त रचना.
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
Vikramji ........ maine socha ki aapne kuch naya likha hoga....... lekin jab aaya to socha ki kuch likh ke hi jaun........
जवाब देंहटाएंDhaynyawaad......
ओ मधुमास मेरे जीवन के
जवाब देंहटाएंक्यूँ इतने सकुचे सकुचे हो
शिशिर गया फिर भी सहमे हो
कहा बसंती हवा रह गयी.क्या दिन आये नहीं फाग के
ati sundar .
भई अभी तो शरद आयेगा फिर शिशिर फिर आयेगा मधुमास प्रतीक्षा करें ।
जवाब देंहटाएं"अधर मेरे अतृप्त बडे हैं
जवाब देंहटाएंखाली सब मधुकोष पड़े हैं
कौन ले गया छ्ल कर मुझसे मधु-मय पल जीवन के"
ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं...बहुत बहुत बधाई...
मैनें अपने सभी ब्लागों जैसे ‘मेरी ग़ज़ल’,‘मेरे गीत’ और ‘रोमांटिक रचनाएं’ को एक ही ब्लाग "मेरी ग़ज़लें,मेरे गीत/प्रसन्नवदन चतुर्वेदी"में पिरो दिया है।
आप का स्वागत है...
'कब पराग भर पावोगे तुम ,शिशिर-समीरण से बच करके'
जवाब देंहटाएंbahad sundar panktiyan.
kavita achchee lagi.
Kaun legaya chal kar muzase madhumay pal mere jeewan ke Bahut sunder. poori kawita bhee bahut sunder bhaw bheeni.
जवाब देंहटाएंVikram ji............ aap kahan pe hain ajkal? bilkul bhi nazar bhi nahi aa rahe hain? tabiyat to thik hai na apki? aapki fikr lagi hai.....
जवाब देंहटाएंकौन ले गया छ्ल कर मुझसे मधु-मय पल जीवन के...intzaar ke lamhe azeeb hote hai...madhu may pal chahe kam ho par hote bahut meethe..tmaam umar mitthas bani rahti hai....
जवाब देंहटाएंआपकी रचनाओं के पठानोपरांत सदैव ही निशब्द रह जाना पड़ता है....सूझता ही नहीं कोई शब्द...क्या कहूँ...
जवाब देंहटाएंआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद,महफूज़ अली जी,कुछ कार्यबस लेखन कार्य से दूर रहा,आपको इस दॊरान मेरी फ्रिक लगी रही .आपके इस अपनेपन के लिये आपका आभारी हूं.
जवाब देंहटाएंअधर मेरे अतृप्त बडे हैं
जवाब देंहटाएंखाली सब मधुकोष पड़े हैं
कौन ले गया छ्ल कर मुझसे मधु-मय पल जीवन
wah kya baat kahi hai..bhaut sunder