यह अतीत से कैसा बंधन
म्रदुल बहुत थी मेरी इच्छा
देख तुम्हारी हाय अनिच्छा
तोड़ दिये मैने ही उस क्षण,पेम-परों के सारे बंधन
यह अतीत से कैसा बंधन
मौंन ह्रदय से तुम्हे बुलाया
अपनी ही प्रतिध्वनि को पाया
मेरे भाग्य-पटल पर अंकित,उस क्षण के तेरे उर क्रंदन
यह अतीत से कैसा बंधन
चिर-अभाव में आज समाया
कैसी परवशता की छाया
यादों की इस मेह-लहर का,क्यूँ करता हूँ मै अभिनंदन
यह अतीत से कैसा बंधन
vikram
यह अतीत से कैसा बंधन
जवाब देंहटाएंमौंन ह्रदय से तुम्हे बुलाया
अपनी ही प्रतिध्वनि को पाया
मेरे भाग्य-पटल पर अंकित,
उस क्षण के तेरे उर क्रंदन
सुर लय और ताल में इतनी प्यारी रचना, जीतनी भी तारीफ करूँ कम है अब आप समझ ही गए होंगें की कि
"क्यूँ करता हूँ मै अभिनंदन"
हार्दिक बधाई...
चन्द्र मोहन गुप्त
सुंदर और प्रभावशाली रचना पर
जवाब देंहटाएंआपको बधाई ...
कैसी परवशता की छाया
जवाब देंहटाएंयादों की इस मेह-लहर का,क्यूँ करता हूँ मै अभिनंदन
यह अतीत से कैसा बंधन
दिल को छू गयी आपकी रचना । ब्लागवाणी के जाने से बहुत से ब्लाग छूट से गये हैं। उन्हें धीरे धीरे अपनी ब्लाग लिस्ट मे ही डाल रही हूँ। आज आपका ब्लाग भी डाल लिया। देर बाद आने के लिये क्षमा चाहती हूंम। धन्यवाद शुभकामनायें।