
यह अतीत से कैसा बंधन
म्रदुल बहुत थी मेरी इच्छा
देख तुम्हारी हाय अनिच्छा
तोड़ दिये मैने ही उस क्षण,पेम-परों के सारे बंधन
यह अतीत से कैसा बंधन
मौंन ह्रदय से तुम्हे बुलाया
अपनी ही प्रतिध्वनि को पाया
मेरे भाग्य-पटल पर अंकित,उस क्षण के तेरे उर क्रंदन
यह अतीत से कैसा बंधन
चिर-अभाव में आज समाया
कैसी परवशता की छाया
यादों की इस मेह-लहर का,क्यूँ करता हूँ मै अभिनंदन
यह अतीत से कैसा बंधन
vikram [पुन:प्रकाशित]
namaskar sir .diwali ki apko shubhkamna badi sunder rachana hai apki acha laga padhker
जवाब देंहटाएंदेख तुम्हारी हाय अनिच्छा
जवाब देंहटाएंतोड़ दिये मैने ही उस क्षण,पेम-परों के सारे बंधन
सुन्दर अभिव्यक्ति
देख तुम्हारी हाय अनिच्छा
जवाब देंहटाएंतोड़ दिये मैने ही उस क्षण,पेम-परों के सारे बंधन
सुंदर भावाव्यक्ति अच्छी लगी