यह अतीत से कैसा बंधन
म्रदुल बहुत थी मेरी इच्छा
देख तुम्हारी हाय अनिच्छा
तोड़ दिये मैने ही उस क्षण,पेम-परों के सारे बंधन
यह अतीत से कैसा बंधन
मौंन ह्रदय से तुम्हे बुलाया
अपनी ही प्रतिध्वनि को पाया
मेरे भाग्य-पटल पर अंकित,उस क्षण के तेरे उर क्रंदन
यह अतीत से कैसा बंधन
चिर-अभाव में आज समाया
कैसी परवशता की छाया
यादों की इस मेह-लहर का,क्यूँ करता हूँ मै अभिनंदन
यह अतीत से कैसा बंधन
vikram [पुन:प्रकाशित]
शुक्रवार, 5 नवंबर 2010
यह अतीत से कैसा बंधन.......
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
namaskar sir .diwali ki apko shubhkamna badi sunder rachana hai apki acha laga padhker
जवाब देंहटाएंदेख तुम्हारी हाय अनिच्छा
जवाब देंहटाएंतोड़ दिये मैने ही उस क्षण,पेम-परों के सारे बंधन
सुन्दर अभिव्यक्ति
देख तुम्हारी हाय अनिच्छा
जवाब देंहटाएंतोड़ दिये मैने ही उस क्षण,पेम-परों के सारे बंधन
सुंदर भावाव्यक्ति अच्छी लगी