आज रात कुछ थमी-थमी सी
स्वप्न न जानें कैसे भटके
नयनों की कोरो से छलके
दूर स्वान की स्वर भेदी से ,हर आशाये डरी-डरी सी
दर्दो का वह उडनखटोला
ले कर मेरे मन को डोला
स्याह रात की जल-धरा से ,मेरी गागर भरी-भरी सी
शंकाओ का कसता धेरा
कैसा होगा मेरा सवेरा
मंजिल के सिरहाने पर ये ,राहें कैसी बटी-बटी सी
विक्रम
शंकाओ का कसता धेरा
जवाब देंहटाएंकैसा होगा मेरा सवेरा
मंजिल के सिरहाने पर ये ,राहें कैसी बटी-बटी सी
Bahut sundar!
waah bahut hi umda rachna...bdhai sweekaren..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखते है आप ..
जवाब देंहटाएंअच्छी अभिव्यक्ति आभार
जवाब देंहटाएंबहुत ही सटीक भाव..बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ..इतना उम्दा लिखने के लिए !!