आ साथी, अब दीप जलाएँ
लगी निशा होने है, गहरी
घोर तिमिर होगा अब प्रहरी
अपनी अभिलाषाओं को फिर से,निंद्रा-पथ की राह दिखाएँ
आ साथी, अब दीप जलाएँ
है पावस की रात अँधेरी
घन-बूँदों की सुन कर लोरी
शायद नीड़- नयन में लौटे,हमसे रुठी कुछ आशाएँ
आ साथी,अब दीप जलाएँ
आयेगी उषा की लाली
नही रात ये रहने वाली
दीपशिखा की इस झिलमिल में,हम सपनों के महल सजाएँ
आ साथी,अब दीप जलाएँ
vikram
Bade dinon baad aapko padha....bahut sundar...
जवाब देंहटाएंअंधकार को बुझाना है
जवाब देंहटाएंजीवन में खुशिया लाना है
दीप को जलाना है
सकारात्मक सोच व्यक्त करती
सुन्दर रचना:-)
अनुपम भाव उत्कृष्ट लेखन ...आभार
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण अनुपम अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंकान्हा जी के जन्मदिवस की हार्दिक बधाइयां !!!