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रविवार, 23 अगस्त 2009

सच नही कोई परिंदा, जाल मे फँस जायेगा ...

सच नही कोई परिंदा, जाल मे फँस जायेगा
कर हलाले-पाक उसको चाक कर खा जायेगा


रख जुबाँ फिर भी यहाँ तू , बे-जुबाँ हो जायेगा
देखकर शमसीर यदि तू , सच नहीं कह पायेगा

दिल्लगी में दिलकशी हो , दिल कहाँ फिर जायेगा
प्यार और नफरत में यारा , फर्क क्या रह जायेगा

प्यार अपने इम्तिहाँ के , दौर से बच जायेगा
वक़्त की तारीक मे , कैसे पढा वह जायेगा


vikram

5 टिप्‍पणियां:

  1. प्यार अपने इम्तिहाँ के , दौर से बच जायेगा
    वक़्त की तारीक मे , कैसे पढा वह जायेगा
    आप जब कोई भी रचना को अपना भाव देते है तो वह बेहद सरस और खुबसूरत होते है .........बधाई

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  2. बहुत बढिया गज़ल है।बधाई स्वीकारें।

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  3. रख जुबाँ फिर भी यहाँ तू , बे-जुबाँ हो जायेगा
    देखकर शमसीर यदि तू , सच नहीं कह पायेगा
    तल्ख स्वर की गज़ल
    बेहतरीन

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत, बहुत बधाई, इस शानदार रचना के लिए...........
    यह शेर बेहद पसंद आया.........

    रख जुबाँ फिर भी यहाँ तू , बे-जुबाँ हो जायेगा
    देखकर शमसीर यदि तू , सच नहीं कह पायेगा

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