होती है जब भी शाम सखे....
होती है जब भी शाम सखे
तरु पातों को करके कंचन
सरिता को दे सिन्दूरी तन
जाने से पहले करता है,रवि धरती का ऋँगार सखे
होती है जब भी शाम सखे
नीडो मे सबको पहुचाता
रवि अस्ताचल को हैं जाता
पश्चिम की गोदी मे छुप कर वह करता हैं ,विश्राँम सखे
होती है जब भी शाम सखे
मेरी आशा की श्रांत किरण
लौटी हैं दुःख का किये वरण
आकर दृग बिन्दु कपोलों पर, रक्तिम होते हर शाम सखे
होती है जब भी शाम सखे
vikram
मेरी आशा की श्रांत किरण
जवाब देंहटाएंलौटी हैं दुःख का किये वरण
आकर दृग बिन्दु कपोलों पर,
रक्तिम होते हर शाम सखे
होती है जब भी शाम सखे
बहुत सुन्दर !
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ........बधाई
जवाब देंहटाएंमेरी आशा की श्रांत किरण
जवाब देंहटाएंलौटी हैं दुःख का किये वरण
अभिव्यक्ति शानदार
बहुत अच्छा लगा आपका यह लिखा हुआ शुक्रिया
जवाब देंहटाएंमेरी आशा की श्रांत किरण
जवाब देंहटाएंलौटी हैं दुःख का किये वरण
आकर दृग बिन्दु कपोलों पर, रक्तिम होते हर शाम सखे
वाह विक्रम भाई। मजा आ गया पढ़कर।
बहुत ही भावनात्मक रचना..विक्रम जी
जवाब देंहटाएंप्रकृति के साथ अच्छा तादात्म्य.
पूनम
बहुत ही सुंदर रचना प्रकृति को समेटे हुए ।
जवाब देंहटाएंश्रृंगार होना चाहिये और विश्राम ।
Kya baat hai Boss. Bahut sundar .. And I'm not writing this because you've been on my blog. I really like it. Congrats.
जवाब देंहटाएंbahut sunder rachna chitr bhi bahut sunder badhai
जवाब देंहटाएंमेरी आशा की श्रांत किरण
जवाब देंहटाएंलौटी हैं दुःख का किये वरण
आकर दृग बिन्दु कपोलों पर,
रक्तिम होते हर शाम सखे
होती है जब भी शाम सखे
बहुत ही भावमय अभिव्यक्ति के लिये बधाई और शुभकामनायें आभार्
बहूत ही सुन्दर शब्द संयोजन ....... सुन्दर रचना है .... बधाई विक्रम जी
जवाब देंहटाएंbahut sunder
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर गीत. बधाई.
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