है कौन कर रहा प्रलय गान
भय-ग्रसित हो गए तरु के गात
हो शिथिल झर रहे उसके पात
सकुचे सहमें तरु के पंछी,गिर गिर कर तजनें लगे प्राण
है कौन कर रहा प्रलय गान
अविचल सुमेरु भी विकल हुये
झरनों के स्वर भी मंद हुये
स्तब्ध हुआ चंचल समीर,खो बैठा अपना दिशा ज्ञान
है कौन कर रहा प्रलय गान
यह काल-प्रबल का अमिट लेख
जीवन ललाट पर लिखा देख
रोकेगा इसको कौन यहाँ,हर क्षय में यह अस्तित्ववान
है कौन कर रहा प्रलय गान
vikram
है कौन कर रहा प्रलय गान
जवाब देंहटाएंअविचल सुमेरु भी विकल हुये
झरनों के स्वर भी मंद हुये
स्तब्ध हुआ चंचल समीर,खो बैठा अपना दिशा ज्ञान
-लाजबाब-बहुत उम्दा!!
भय-ग्रसित हो गए तरु के गात
जवाब देंहटाएंहो शिथिल झर रहे उसके पात
बेहतरीन भाव की यह रचना ---
विसंगतियो को संग लेकर चलने की मानव प्रकृति समूल विनाश की ओर ही ले जा रही है
शायद यह प्रलय गान है ----
बहुत ही सुंदर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लिखी हुई आपकी ये शानदार रचना काबिले तारीफ है!
जवाब देंहटाएंहै कौन कर रहा यह प्रलय - गान...
जवाब देंहटाएंविनाश की ओर बढती सृष्टि से चिंतित बहुत उम्दा भावों से युक्त कविता ...बहुत शुभकामनायें ..!!
अविचल सुमेरु भी विकल हुये
जवाब देंहटाएंझरनों के स्वर भी मंद हुये
स्तब्ध हुआ चंचल समीर,खो बैठा अपना दिशा ज्ञान
waah behad khubsurat
अविचल सुमेरु भी विकल हुये
जवाब देंहटाएंझरनों के स्वर भी मंद हुये
स्तब्ध हुआ चंचल समीर,
खो बैठा अपना दिशा ज्ञान
बहुत ही सुंदर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लिखी हुई आपकी ये शानदार रचना काबिले तारीफ है!
हार्दिक आभार.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
बहुत ही सुंदर भाव और अभिव्यक्ति है. ...शानदार
जवाब देंहटाएंयह काल-प्रबल का अमिट लेख
जवाब देंहटाएंजीवन ललाट पर लिखा देख
रोकेगा इसको कौन यहाँ,हर क्षय में यह अस्तित्ववान
है कौन कर रहा प्रलय गान
बहुत सुन्दर और सत्य अभिव्यक्ति के लिये बहुत बहुत बधाई। काल की लकीरों को कोई लाँघ नहीं सकता
स्तब्ध हुआ चंचल समीर,खो बैठा अपना दिशा ज्ञान
जवाब देंहटाएंहै कौन कर रहा प्रलय गान
यह काल-प्रबल का अमिट लेख
जीवन ललाट पर लिखा देख
रोकेगा इसको कौन यहाँ,हर क्षय में यह अस्तित्ववान
है कौन कर रहा प्रलय गान.....
bahut hi sunder ......... shabdon se baandh ke rakha aappne.....
अविचल सुमेरु भी विकल हुये
जवाब देंहटाएंझरनों के स्वर भी मंद हुये
स्तब्ध हुआ चंचल समीर...
Waah! waah! ati sundar!